तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालीग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है।
तुलसी विवाह 2023 मुहूर्त:
- 24 नवंबर 2023
- अभिजित मुहूर्त – सुबह 11.46 – दोपहर 12.28
- गोधूलि बेला – शाम 05.22 – शाम 05.49
- सर्वार्थ सिद्धि योग – पूरे दिन
- अमृत सिद्धि योग – सुबह 06.50 – शाम 04.01
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तुलसी विवाह की कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक राक्षस था जिसका नाम जालंधर था। वह बहुत ही शक्तिशाली था, उसे हराना आसान न था। उसके शक्तिशाली होने का कारण था, उसकी पत्नी वृंदा। जालंधर की पत्नी वृंदा पतिव्रता थी। उसके प्रभाव से जालंधर को कोई भी परास्त नहीं कर पाता था। जालंध का आतंक इस कद्र बढ़ा की देवतागण परेशान हो गए।
जालंधर से मुक्ति पाने के लिए देवतागण मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें सारी व्यथा सुनाई। इसके बाद समाधान यह निकाला गया की क्यों न वृंदा के सतीत्व को ही नष्ट कर दिया जाए। पत्नी वृंदा की पतिव्रता धर्म को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर दिया। जिसके कारण वृंदा का पतिव्रत धर्म नष्ट हुआ और जालंधर की शक्ति क्षीण हो गई और युद्ध में शिव जी ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।
वृंदा विष्णु जी की परम भक्त थी जब उसे ये पता चला कि स्वंय विष्णु जी ने उसके साथ छल किया है तो उसे गहरा आघात पहुंचा। वृंदा ने श्री हरि विष्णु को श्राप दिया कि वे तुरंत पत्थर के बन जाएं। भगवान विष्णु ने देवी वृंदा का श्राप स्वीकार किया और वे एक पत्थर के रूप में आ गए। यह देखकर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त करें।
वृंदा ने भगवान विष्णु को तो श्राप मुक्त कर दिया लेकिन, उसने खुद आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुई वहां पौधा उग गया, जिसे विष्णु जी ने तुलसी का नाम दिया और बोले कि शालिग्राम नाम से मेरा एक रूप इस पत्थर में हमेशा रहेगा। जिसकी पूजा तुलसी के साथ ही की जाएगी। यही वजह है कि हर साल देवउठनी एकादशी पर विष्णु जी के स्वरूप शालीग्राम जी और तुलसी का विवाह कराया जाता है।
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तुलसी विवाह 2023 पूजन सामग्री
1 | एक तुलसी का पौधा |
2 | भगवान शालिग्राम की मूर्ति, शालिग्राम पत्थर या तस्वीर |
3 | पीला कपड़ा, एक लाल रंग की चुनरी |
4 | सिंदूर, कुमकुम, अक्षत्, मिट्टी का दीया, घी, फूल, मौसमी फल |
5 | पंचामृत, मूली, गन्ना, शकरकंद, आंवला, सिंघाड़ा, बेर, सीताफल, अमरूद |
6 | तुलसी विवाह कथा की पुस्तक, विष्णु सहस्रनाम |
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कैसे मनाएं तुलसी विवाह
- तुलसी विवाह के दिन अपने घर में यज्ञ और सत्यनारायण की कथा कराने से विशेष लाभ मिलता है।
- तुलसी विवाह घर या मंदिर में मनाया जा सकता है।
- इस दिन शाम तक या तुलसी जी का विवाह होने तक व्रत रखा जाता है।
- सबसे पहले तुलसी जी के पौधे और भगवान विष्णु की मूर्ति को स्नान कराया जाता है।
- इसके बाद तुलसी के पौधे को लाल साड़ी या चुनरी, आभूषण औ बिंदी आदि के साथ एक दुल्हन की तरह सजाया जाता है।
- विष्णु जी की मूर्ति को धोती पहनाई जाती है। अब इन दोनों को धागे के माध्यम से एक साथ बांधा जाता है।
- विवाह में तुलसी जी और भगवान विष्णु पर सिंदूर और चावल की वर्षा की जाती है।
- इसके बाद सभी भक्तों को प्रसाद बांटा जाता है।
तुलसी विवाह एक शुभ अवसर है, जो प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन लोग भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा करते हैं और उनसे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
मान्यता है कि इस दिन तुलसी माता और शालिग्राम जी की आरती विधि अनुसार करनी चाहिए, जिससे सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
तुलसी माता की आरती
जय जय तुलसी माता
सब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता ।।
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता।।
बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता ।।
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता ।।
श्री शालिग्राम जी की आरती
शालिग्राम सुनो विनती मेरी |
यह वरदान दयाकर पाऊं ||
प्रातः समय उठी मंजन करके |
प्रेम सहित स्नान कराऊं ||
चन्दन धूप दीप तुलसीदल |
वरण – वरण के पुष्प चढ़ाऊं ||
तुम्हरे सामने नृत्य करूं नित |
प्रभु घण्टा शंख मृदंग बजाऊं ||
चरण धोय चरणामृत लेकर |
कुटुम्ब सहित बैकुण्ठ सिधारूं ||
जो कुछ रूखा – सूखा घर में |
भोग लगाकर भोजन पाऊं ||
मन बचन कर्म से पाप किये |
जो परिक्रमा के साथ बहाऊं ||
ऐसी कृपा करो मुझ पर |
जम के द्वारे जाने न पाऊं ||
माधोदास की विनती यही है |
हरि दासन को दास कहाऊं ||
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