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Krishna Janmashtami 2023 व्रत-महोत्सव कब और कैसे मनाएं

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Krishna Janmashtami 2023 व्रत-महोत्सव कब और कैसे मनाएं

6 सितम्बर, बुधवार 2023 ई. - महापुण्यप्रदायक जयन्ती योग

  • 6 सितम्बर श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी व्रत स्मार्त- (गृहस्थियों के लिए), श्रीकृष्ण जयंती 
  • 7 सितम्बर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत वैष्णव (संन्यासियों के लिए) 

Krishna Janmashtami 2023 के दिन का पंचांग 

  • 6 सितम्बर
  • तिथि सप्तमी 15:37:09
  • पक्ष कृष्ण
  • नक्षत्र कृत्तिका 09:18:56
  • चंद्रोदय 22:53:51
  • 7 सितम्बर
  • तिथि अष्टमी 16:13:40
  • पक्ष कृष्ण
  • नक्षत्र रोहिणी 10:23:47
  • चंद्रोदय 23:41:26
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Krishna Janmashtami श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी
Pt. Hatinder Shastri

श्रीमद्भागवत, भविष्यादि सभी पुराणों के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण

अष्टमीतिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चन्द्रमा-कालीन अर्द्धरात्रि के समय हुआ था- मासि भाद्रपदे, अष्टम्यां कृष्णपक्षेऽर्द्ध रात्रके । वृष राशि स्थितो चन्द्रे, नक्षत्रे रोहिणी युते ।। (भविष्यपुराण) श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व के समय छहों तत्त्वों भाद्र कृष्ण पक्ष, अर्द्धरात्रिकाल, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र एवं वृष का चन्द्र और बुधवार या सोमवार की विद्यमानता (सम्मिलन) बड़ी कठिनता से प्राप्त होती है। अनेकों वर्षों में कई बार भा.कृ. अष्टमी की अर्द्धरात्रि को वृष का चन्द्र तो होता है, परन्तु रोहिणी नक्षत्र नहीं होता। इसी पंचांग में प्रायः सप्तमीविद्धा अष्टमी को स्मार्तानां तथा नवमीविद्धा अष्टमी को वैष्णवानां लिखा होता । इस वर्ष 6 सितम्बर, 2023 ई. को प्रायः सभी तत्त्वों का दुर्लभ योग मिल रहा है अर्थात् 6 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन अर्द्धरात्रिव्यापिनी अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृषस्थ चन्द्रमा का दुर्लभ एवं पुण्यप्रदायक योग बन रहा है। प्रायः सभी शास्त्रकारों ने ऐसे दुर्लभ योग की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा एवं स्तुतिगान किया है। यथा - निर्णयसिन्धु अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में यदि अष्टमी तिथि मिल जाए तो उसमें श्रीकृष्ण का पूजार्चन करने से जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं- 'रोहिण्यां- अर्द्धरात्रे च यदा कृष्णाष्टमी भवेत् । तस्याभ्यर्चनं शौरे : हन्ति पापं त्रिजन्मजम् ॥ श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र के योग से रहित हो तो 'केवला और 'रोहिणी' नक्षत्र युक्त हो तो 'जयन्ती' कहलाती है। 'जयन्ती' में बुध या सोमवार का योग आ जाए तो वह अत्युत्कृष्ट फलदायक हो जाती है। 'केवलाष्टमी' और 'जयन्ती' में अधिक भिन्नता नहीं है, क्योंकि अष्टमी के बिना जयन्ती का स्वतन्त्र स्वरूप नहीं हो सकता। प्राचीनकाल से ही अर्द्धरात्रि- व्यापिनी अष्टमी में रोहिणी नक्षत्र के बिना भी व्रत-उपवास किया जाता है, परन्तु तिथि-योग के बिना रोहिणी में किसी प्रकार का स्वतन्त्र विधान नहीं है। अतः श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ही रोहिणी नक्षत्र के योग से जयन्ती बनती है । एतदर्थ कहा गया है कि 'रोहिणी - गुणविशिष्टा जयन्ती ' ।। विष्णुरहस्य का भी यह श्लोक 'जयन्ती - योग' की पुष्टि करता है- अष्टमी कृष्णपक्षस्य रोहिणीऋक्षसंयुता । भवेत्प्रोष्ठपदे मासि जयन्तीनाम सा स्मृता । अर्थात् भाद्रपद कृष्णाष्टमी यदि रोहिणी से संयुक्त होती है तो वह जयन्ती नाम से जानी जाती है। 'गौतमी तन्त्र' में भी इस सम्बन्ध में स्पष्टतः लिखा गया है कि भाद्र कृष्णाष्टमी यदि रोहिणी नक्षत्र और सोम या बुधवार से संयुक्त हो जाए तो वह जयन्ती नाम से विख्यात होती है। जन्म-जन्मान्तरों के पुण्यसंचय से ऐसा योग मिलता है। जिस मनुषअय को जयन्ती- उपवास का सौभाग्य मिलता है, उसके कोटि जन्मकृत पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जन्म-बन्धन से मुक्त होकर वह परम दिव्य वैकुण्ठादि भगवद् धाम में निवास करता है-  अष्टमी रोहिणी युक्ता चार्धरात्रे यदा भवेत् । उपोष्य तां तिथिं विद्वान् कोटियज्ञफलं लभेत् ।। सोमाणि बुधवासरे वा अष्टमी रोहिणी युता । जयन्ती सा समाख्याता सा लभ्या पुण्य संचयैः।। (गौतमी तन्त्र) 'पद्मपुराण' अनुसार भी जिन्होंने श्रावण (भाद्रपद) में रोहिणी, बुधवार या सोमवार युक्त अथवा कोटि-कुलों की मुक्ति देने वाली नवमीयुक्त जन्माष्टमी का व्रत किया है वे प्रेतयोनि को प्राप्त हुए अपने पितरों को भी प्रेतयोनि से मुक्त कर देते हैं।

'प्रेतयोनिगतानां तु प्रेतत्वं नाशितं तु तैः । तु कृता श्रावणे (भाद्रे) मासि अष्टमी रोहिणीयुता । किं पुनः बुधवारेण सोमेनापि विशेषतः । किं पुनः नवमीयुक्ता कुलकोटयास्तु मुक्तिदा ॥' 

अस्तु, सभी धर्म एवं निबन्ध ग्रन्थों में ऐसे दुर्लभ योग की विशेष महिमा कही है। उपरोक्त शास्त्रवचनों के अनुसार 6 सितम्बर, बुधवार को प्रातः ध्वजारोहण एवं संकल्पपूर्वक व्रतानुष्ठान करके 'ॐ नमः भगवते वासुदेवाय ।' 'ॐ कृष्णाय वासुदेवाय गोविन्दाय नमो नमः ' आदि मन्त्र जप, श्रीकृष्ण नाम स्तोत्रपाठ, कीर्तनादिं तथा रात्रि को श्रीकृष्ण बालरूप की पूजार्चन, ध्वजारोहण, झूला झुलान, चन्द्रार्घ्यदान, जागरण-कीर्तनादि शुभं कृत्य करने चाहिए। रात्रि को बारह बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीकस्वरूप खीरा फोड़कर एवं शंख ध्वनि सहित भगवान् का जन्मोत्सव मनाएँ । जन्मोत्सव के पश्चात् कर्पूरादि प्रज्वलित कर सामूहिक स्वर से श्रीभगवान् की आरती- स्तुति करें। फिर शङ्ख में गंगाजल सहित दूध-जल, फल, कुश, कुसुम, गन्धादि डालकर निम्न मन्त्र द्वारा चन्द्रमा को अर्घ्य देकर नमस्कार कर अर्घ्य देवें- 'क्षीरोदार्णवसंभूत अत्रिनेत्र - सम-उद्भव । गृहाणार्घ्यं शंशाङ्क इमं रोहिण्या सहितो मम ।। ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते । नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्यं मे प्रतिगृह्यताम् ।। तत्पश्चात् देवकी को अर्घ्य, श्रीकृष्ण को पुष्पाञ्जलि अर्पण करे तथा 'सोमाय सोमेश्वराय सोमपतयो सोमसम्भवाय सोमाय नमो नमः' से चन्द्रमा का पूजन करें। फिर नमस्कार करके प्रार्थना करें- त्राहि मां सर्वपापघ्नं दुखशोकार्णवात् प्रभो ! अर्थात् हे प्रभो ! दुःख व शोकरूपी समुद्र से मेरी रक्षा करो । तत्पश्चात् मक्खन, मिश्री - धनिया, केले आदि फलों का प्रसाद ग्रहण करें। फिर भगवान् श्रीकृष्ण के ध्यान / नाम मन्त्रों का यथाशक्ति जाप करते रहें- 'ॐ नारायणाय नमः, अच्युताय नमः, अनन्ताय नमः, वासुदेवाय नमः ।।' 'तिथ्यन्ते चोत्सवान्ते च व्रत कुर्वीत पारणम्'   दूसरे दिन मिष्ठान्न सहित प्रसाद बाँटना, ब्राह्मण भोजन एवं यथाशक्ति दान करके श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी के दुर्लभ पर्व का अवश्य पुण्य-लाभ उठाना चाहिए। इस दिन अभीष्ट सन्तान प्राप्ति के लिए विधिपूर्वक सन्तान गोपाल स्तोत्र या हरिवंश पुराण का पाठ करने का विशेष माहात्म्य होगा। इस पर्व के सम्बन्ध में संशय या संदिग्ध कुछ भी नहीं है। फिर भी 'जयन्ती योग' के उपलक्ष्य में माहात्म्य लिखा गया है। Pt. Hatinder Shastri

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