स्यमन्तक मणि की रोमांचक कथा
एक समय की बात है, द्वारिका नगरी में सत्राजित नाम का एक यादव रहता था। वह भगवान सूर्य का परम भक्त था। भगवान सूर्य ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे एक अद्भुत मणि प्रदान की, जिसका नाम था स्यमन्तक। यह मणि प्रतिदिन आठ भार सोना देने वाली थी।
एक दिन, सत्राजित ने अपने भाई प्रसेनजित को वह मणि पहना दी। प्रसेनजित उस मणि को पहनकर शिकार के लिए वन में चला गया। वहां एक शेर ने उसे मार डाला और मणि लेकर चला गया।
जब प्रसेनजित कई दिनों तक शिकार से न लौटा तो सत्राजित को बहुत दुख हुआ। उसने सोचा कि शायद श्रीकृष्ण ने ही मणि प्राप्त करने के लिए उसके भाई का वध कर दिया होगा। इसलिए उसने श्रीकृष्ण पर झूठा आरोप लगाया कि उन्होंने प्रसेनजित को मारकर मणि छीन ली है।
श्रीकृष्ण को इस बात से बहुत दुख हुआ। उन्होंने सत्राजित को समझाया कि वह निर्दोष हैं, लेकिन सत्राजित ने उनकी बात नहीं मानी। उसने श्रीकृष्ण को बदनाम करने के लिए जगह-जगह प्रचार कर दिया।
श्रीकृष्ण को अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों से बहुत दुख हुआ। उन्होंने इस कलंक को दूर करने के लिए स्यमन्तक मणि की खोज शुरू की। उन्होंने वन में कई दिनों तक खोजबीन की, लेकिन उन्हें मणि नहीं मिली।
आखिरकार, एक दिन श्रीकृष्ण को जामवंत नाम के एक रीछराज के पास मणि मिली। जामवंत ने बताया कि उसने एक सिंह को मारकर मणि को अपने कब्जे में लिया था।
श्रीकृष्ण ने जामवंत से मणि वापस मांगी, लेकिन जामवंत ने उसे देने से मना कर दिया। दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया। श्रीकृष्ण ने जामवंत को पराजित करके मणि को अपने कब्जे में ले लिया।
श्रीकृष्ण ने मणि को सत्राजित को लौटा दिया। सत्राजित को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने श्रीकृष्ण से माफी मांगी। श्रीकृष्ण ने उसे माफ कर दिया। यह कथा सुनने से भी कलंक दोष नहीं लगता।
इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि हमें दूसरों पर बिना किसी सबूत के आरोप नहीं लगाने चाहिए। झूठे आरोप लगाने से हमारा ही नुकसान होता है।
चंद्रदर्शन से कलंक
श्रीकृष्ण ने स्यमन्तक मणि की खोज के दौरान भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देख लिया था। इस कारण उन्हें झूठे आरोपों का सामना करना पड़ा।
नारदजी ने श्रीकृष्ण को बताया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखने से मनुष्य पर चोरी आदि का झूठा लांछन लगता है। इस दिन चंद्रमा को देखने से बचना चाहिए।
इसलिए, भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखने से बचना चाहिए। यदि किसी को भूल से चंद्रमा दिख जाए तो उसे सिद्धिविनायक व्रत करना चाहिए। इस व्रत से कलंक दूर हो जाता है।
श्रीकृष्ण ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया
श्रीकृष्ण ने भी कलंक से मुक्त होने के लिए सिद्धिविनायक व्रत किया था। इस व्रत के प्रभाव से उन पर लगा झूठा आरोप साफ हो गया।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में युधिष्ठिर ने भी गणेश चतुर्थी का व्रत किया था। इस व्रत के प्रभाव से उन्हें युद्ध में विजय प्राप्त हुई।
इसलिए, हमें भी गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत से हमें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।