Karwa Chauth: करवा चौथ एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो भारत और दुनिया भर के अन्य हिस्सों में मनाया जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है।करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा कब से और कैसे प्रारंभ हुई? क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथाएं? करवा चौथ की 1 नहीं लगभग 3 कथाएं प्रचलन में हैं जिनसे जुड़ा हुआ है करवाचौथ का व्रत त्योहार। आओ जानते हैं इन्हीं कथाओं को संक्षिप्त में।
पहली कथा : प्राचीन काल की बात है कि एक साहूकार के 7 बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर कार्तिक चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। दूसरी कथा: द्रोपदी और अर्जुन की कहानीद्रोपदी ने करवा चौथ का व्रत अर्जुन की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा था। जब अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए थे, तो द्रोपदी को उनकी चिंता सताने लगी। उन्होंने श्री कृष्ण भगवान से मदद मांगी।
श्री कृष्ण ने द्रोपदी को करवा चौथ का व्रत रखने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि इस व्रत को करने से द्रोपदी की चिंताएं दूर हो जाएंगी और अर्जुन सुरक्षित वापस आ जाएंगे।
द्रोपदी ने श्री कृष्ण की बात मान ली और करवा चौथ का व्रत रखा। उन्होंने पूरे दिन उपवास रखा और शाम को चांद को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ा।
द्रोपदी के व्रत के प्रभाव से अर्जुन सुरक्षित वापस आ गए। उन्होंने द्रोपदी से कहा कि उन्होंने करवा चौथ का व्रत करने के कारण ही उन्हें इस कठिनाई से बचाया जा सका।
तीसरी कथा करवा चौथ की कथा
करवा चौथ की कथा एक साहूकार की बेटी करवा के बारे में है। करवा एक धर्मपरायण और पतिव्रता महिला थी। एक दिन, करवा के पति ने नदी में स्नान करते समय एक मगरमच्छ का शिकार किया। मगरमच्छ ने बदला लेने के लिए करवा के पति को मारने की कोशिश की।
करवा ने अपने पति को बचाने के लिए कड़ी मेहनत की। उसने मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया और फिर उसे मार डाला। करवा के पति की जान बच गई, लेकिन वह बहुत बीमार हो गए।
करवा ने अपने पति के ठीक होने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। उसने पूरे दिन उपवास रखा और शाम को चांद को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ा। करवा के सच्चे प्रेम और समर्पण से प्रसन्न होकर, देवताओं ने उसके पति को ठीक कर दिया।
करवा चौथ की पूजा विधि
करवा चौथ की पूजा विधि निम्नलिखित है:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
- करवा चौथ की पूजा सामग्री तैयार करें, जिसमें करवा, सुहाग सामग्री, रोली, अक्षत, हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, माला, धूप, दीप, नैवेद्य आदि शामिल हैं।
- करवा चौथ की कथा पढ़ें।
- करवा चौथ की पूजा करें।
- शाम को चांद को अर्घ्य दें।
- व्रत खोलें और अपने पति के साथ भोजन करें।
करवा चौथ के कुछ महत्वपूर्ण मंत्र
- करवा चौथ व्रत कथा में भगवान शिव और माता पार्वती का मंत्र:
ॐ नमः शिवाय।
ॐ पार्वतीपतये नमः।
- करवा चौथ की पूजा में भगवान गणेश का मंत्र:
ॐ गं गणपतये नमः।
- करवा चौथ की पूजा में माता पार्वती का मंत्र:
ॐ देवी पार्वती नमः।
करवा चौथ के कुछ महत्वपूर्ण व्रत नियम
- करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिला को पूरे दिन उपवास रखना चाहिए।
- करवा चौथ की पूजा में सुहाग सामग्री का इस्तेमाल करना चाहिए।
- करवा चौथ की पूजा में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए।
- शाम को चांद को अर्घ्य देकर ही व्रत खोलना चाहिए
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का व्रत हिंदू महिलाओं के लिए आशा और विश्वास का प्रतीक है। यह कथा सुझाती है कि पतिव्रता महिलाओं के सच्चे प्रेम और समर्पण से उनके पति के जीवन में सुख और समृद्धि आती है।